
वृद्धाश्रम में बुजुर्गों को छोड़ना एक ऐसा सामाजिक कलंक बनता जा रहा है, जो उनकी जिंदगी का सबसे कठिन दौर बना देता है। जो लोग कभी हमारे लिए जीते हैं, हमारे सपनों को साकार करते हैं, उन्हें उनके अंतिम समय में अकेला छोड़ना बेहद दुखद है। हाल ही में भोपाल से आई खबर ने इस दर्दनाक सच को फिर से उजागर किया। भास्कर जैसे लोग, जिन्होंने अपने माता-पिता को जीते-जी वृद्धाश्रम में छोड़ दिया, अब पंडितों के कहने पर तर्पण के लिए बेचैन हैं। लेकिन क्या उनके माता-पिता की आत्मा को वाकई शांति मिलेगी, जब उन्होंने उन्हें उनके जीवन में अकेलेपन की आग में झोंक दिया?
वृद्धाश्रम: बुजुर्गों का दूसरा घर या एकाकी जीवन का कारागार?
भोपाल के श्रीहरि वृद्धाश्रम की कहानी एक ही नहीं है। कई वृद्धाश्रमों में ऐसे बुजुर्गों की भरमार है, जिन्हें उनके बच्चों ने बेसहारा छोड़ दिया। सतीश शर्मा, कन्हैयालाल सिंधी, और काशीबाई दांगी जैसे बुजुर्गों को उनके अपने परिवार ने एक अजनबी दुनिया में धकेल दिया। उनके बच्चे, जो सालों तक उनकी सुध नहीं लेते थे, अब तर्पण करने और निशानियां लेने के लिए वृद्धाश्रम का चक्कर लगा रहे हैं।
माता-पिता ने जीवनभर अपनी संतान के लिए जो कुछ भी किया, क्या उसका यही अंत है? जब वे प्यार और देखभाल के सबसे ज्यादा हकदार होते हैं, तब उन्हें पराया समझकर वृद्धाश्रम में भेज दिया जाता है।
क्या तर्पण से मिल जाएगी मोक्ष?
भास्कर जैसे कई लोग, जिन्होंने माता-पिता के अंतिम संस्कार में भी हिस्सा नहीं लिया, अब तर्पण के लिए वृद्धाश्रम में दौड़ रहे हैं। वे पंडितों के कहने पर अपने माता-पिता की छोटी-छोटी निशानियां मांग रहे हैं—कभी चश्मा, कभी लोटा, और कभी चप्पल। लेकिन क्या तर्पण या ये प्रतीकात्मक वस्तुएं उन पापों को धो सकती हैं, जो जीते-जी उन्होंने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़कर किए थे?
“जीते-जी प्यार दो, मरने के बाद निशानियों के पीछे न भागो”
सच्चाई यह है कि माता-पिता की आत्मा की शांति उनके जीते-जी सम्मान और प्यार से जुड़ी होती है, न कि उनके मरने के बाद तर्पण से। उनका असली तर्पण तब है, जब वे अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने परिवार के बीच रहें, न कि किसी अजनबी जगह पर।
वृद्धाश्रम के सचिव आरआर सुरंगे के शब्दों में, “जिंदगी का ये अजीब सच है कि जीते-जी भले चिंता न करें, लोग मरने के बाद सामान और मृत्यु प्रमाण पत्र ले जाना नहीं भूलते।”
कहें #SayNoToOldAgeHome: बुजुर्गों का सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है
समाज में ये प्रचलन बदलने की सख्त जरूरत है। हम सभी को समझना चाहिए कि वृद्धाश्रम में बुजुर्गों को छोड़ना एक समाधान नहीं, बल्कि एक समस्या है। हमें अपने बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा। यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें उस प्यार और सम्मान के साथ अपने घर में रखें, जिसके वे हकदार हैं।
कुछ कदम जो हम उठा सकते हैं:
- माता-पिता को समय दें: उनके साथ समय बिताना, उनकी सुनना और उनकी देखभाल करना सबसे बड़ा उपहार है जो हम उन्हें दे सकते हैं।
- सामाजिक जागरूकता फैलाएं: लोगों को इस बारे में जागरूक करना जरूरी है कि वृद्धाश्रम में बुजुर्गों को भेजना सही समाधान नहीं है।
- परिवार में बुजुर्गों को शामिल करें: उन्हें परिवार के हर छोटे-बड़े निर्णय में शामिल करें ताकि वे महसूस करें कि वे परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
अंत में…
तर्पण और निशानियों से कहीं अधिक जरूरी है जीते-जी अपने माता-पिता को प्रेम और सम्मान देना। वृद्धाश्रम सिर्फ एक विकल्प नहीं होना चाहिए। असली संतोष तब मिलेगा जब बुजुर्ग अपने बच्चों के साथ खुशी और सम्मान के साथ अपने अंतिम दिन बिताएं।
तो आइए, आज से ही #SayNoToOldAgeHome का संकल्प लें और अपने बुजुर्गों को वह प्यार और देखभाल दें, जिसके वे सच्चे हकदार हैं।