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वृद्धावस्था- कड़वे अनुभव से सामना

मनुष्य का प्राय: भय हैं वृद्धावस्था, जिसमें आते-आते मनुष्य का जीवन अतिसंघर्षमय हो जाया है। गिरती सेहत, कम होती आमदनी और बिछड़ते परिजन से बुजुर्ग स्वयं को असहाय समझते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगते हैं। जीवन के इस आखिरी पहर में अपनी बहुमूल्य वस्तुओं  खोते देखते रहते हैं । इस अवस्था में आते ही बजुर्ग संसार की चकाचौंध के साथ संघर्ष करते-करते अंतिम स्वास भर ले रहे होते है। कई बार हिम्मत भी हरते हैं लेकिन कई बार जुझते रहते हैं। 60 साल की उम्र के बाद चेहरों पर झुर्रियां अथवा हजारों तरह की बीमारियों से बजुर्गों का संबंध जुड़ जाता है जिससे छुटकारा श्मशान पर पँहुचने पर ही मिलता है।

आजकल बुजुर्गों के बदतर हालत देखकर लगता हैं, हमें अगर ये सब ना झेलना पड़े तो अच्छा है। आधुनिक भागदौड़ और थकान भरी जीवनशैली में जब 30 साल की उम्र मे ही कमर टूटी जा रही हैं, घूटनों ने अभी से ही जवाब दे दिया है, तो क्या होगा बुढ़ापे में। क्या होगा उन अपसराओं का जो 5 घंटे सुंदरता का मुखौटा पहनने श्रृंगार कला केंद्र जाती हैं, जब बुढ़ापे की झुर्रियाँ आयेगी तो कैसें वो स्वयं को देख पायेगी| बड़ी विकट समस्या आ पड़ी हैं और ये प्रचार वाले हजारों तरह के विज्ञापन देकर लोगों के बुढ़ापे का मज़ाक बनाते जा रहे हैं और हम उनके मज़ाक का पात्र बनते जा रहे हैं| वास्तव में वृद्धावस्था एक भय है| राजा भर्तृहरी कहते हैं भोगो से रोग का भय है,  रूप मे वृद्धावस्था का अथवा हर समय एक भय रहता है कोई रोग लग जाये तो, उम्र बढ़े तो बुढ़ापे का पंरतु वृद्धजनों की दशा में कुछ ऐसे चिंतनीय पहलु भी है, जिसका विवरण करना असंभव है| वृद्धावस्था एक ऐसा मोड़ है, जहाँ पर आकर सबकी गाड़ी रूक-रूक सरकती हैं एंव जब वो गाड़ी अचानक से रूक जाती हैं तो वही उस जीवन का अंतिम सफर हो जाता है|

(स्तुति शुक्ला द्वारा लिखा गया।)

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